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वामा-विश्व की चिंता

Vikalp
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नेपाल में विश्व बैंक और ऑक्सफ़ेम के तत्वाधान् में आधी आबादी से जुड़े
मुद्दों पर इन दिनों वैचारिक मंथन चल रहा है। ‘महिला हिंसा का प्रतिरोध’
विषय पर आयोजित इस सम्मेलन से वामा-विश्व के साथ इंसाफ़ हेतु कुछ ठोस व
व्यावहारिक सुझावों की उम्मीद की जा रही है। महिलाओं की दुर्दशा सदैव से
ही स्त्री अध्ययन की मुख्य विषय-वस्तु रही है। समाज में संसाधनों व सत्ता
के विभाजन में विभेदकारी तरीक़े से स्त्रियों के साथ नाइंसाफ़ी की गयी है।
महिलाओं द्वारा किये जानेवाले घरेलू कार्यों को आर्थिक रूप से अनुत्पादक
मानकर उनके श्रम की घोर अवहेलना की जाती रही है। स्त्रीवाद के अनुसार
सम्पूर्ण विश्व में पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना ने महिलाओं को हाशिए पर
धकेला है। भारत के मामले में जाति, धर्म, समुदाय आदि के कारण से महिलाओं
की स्थिति और भी बदतर हुई। स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, सम्मान आदि के
सन्दर्भ में महिलाओें के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया गया। स्तनपान,
पालन-पोषण, भोजन आदि के मामले में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को ज़्यादा
वरीयता दी जाती है। लड़कियों को पराया धन समझकर उनके साथ दोयम दर्ज़े का-सा
बर्ताव किया जाता है। यौनिक व घरेलू हिंसा के रूप में उनपर कहर बरपा किया
जाता है। यदि स्त्रियों की स्थिति में सुधार करना है तो हमें वस्तुस्थिति
को पुरूषवादी चश्मे से नहीं बल्कि महिलाओं की नज़र से देखना होगा। शिक्षा,
पालन-पोषण, निर्णय-निर्माण प्रक्रिया और योजनाओं के क्रियान्वयन में
उन्हें बराबरी का हक़ देना होगा। घर एवं कार्यस्थल पर सुरक्षा के पुख़्ता
इंतज़ामात करने होंगे। समतामूलक समाज की स्थापना हेतु आधी आबादी के साथ
इंसाफ़ निहायत ही ज़रूरी है।

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