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लाल आतंक की चुनौती

Vikalp
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आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल भी दण्डकारण्य के शहीदों में शामिल हो गये। उनकी शहादत से एक बार फिर नक्सलवाद से निपटने के अभियान में तेज़ी लाने को बल प्राप्त हुआ है। उम्मीद करते हैं कि पिछले महीने छत्तीसगढ़ में हुई नक्सली हिंसा में क़ुर्बान हुए लोगों को सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए समस्या का जड़ से समाधान किया जाएगा। विदित हो कि कुछ समय पहले नई दिल्ली में बुलाई गयी सर्वदलीय बैठक में नक्सलियों के सफ़ाए के लिए दोतरफ़ा रणनीति के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास-कार्यों को बढ़ावा देने और सघन सैन्य अभियान चलाने पर सहमति बनी।

नक्सलियों के आय के स्रोत व हथियारों की ख़रीद के रास्ते को बंद करके हम उनको पंगु बना सकते हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर की अध्यक्षता में गठित एक सदस्सीय समिति ने माना है कि नक्सली आतंक शोषण का प्रतिकार है। वहाँ आर्थिक विकास और स्थानीय प्रशासन में लोगों को भागीदार नहीं बनाया गया। नौकरशाही, उद्योगपतियों व राजनेताओं का गठजोड़ बहुमूल्य खनिज संसाधनों की लूट करता रहा और आम जनता विस्थापित होने को अभिशप्त रही। अतएव, विकासात्मक कार्यों को विस्तार देने के लिए सबसे ज़रूरी है कि अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में लोकतंत्र की नींव अर्थात् पंचायतों की स्थापना हेतु पेसा यानि कि प्रोविज़न ऑफ़ पंचायत राज (एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) एक्ट, 1996 लागू किया जाए।

स्तम्भकार एस. शंकर ने ठीक ही कहा नक्सलियों से निपटने के लिए हमें तीसरे रास्ते पर भी चलते हुए नक्सल विचारधारा पर प्रहार करना होगा, क्योंकि वे जनता को इसकी एकाकी तस्वीर पेश करके बेहतर जीवन का सब्ज़बाग़ दिखाते हैं। लाल आतंक से आच्छादित इलाक़ों में सोवियत संघ, चीन, वियतनाम, क्यूबा आदि विभिन्न देशों हुए माक्र्सवाद, लेनिनवाद, माओवाद के असफल प्रयोग की दास्तां का प्रचार करके जनता को आगाह करना होगा। उन्हें यह भी बताना होगा कि साठ-सत्तर के दशक में जन्मे इस आन्दोलन की असल वजह पश्चिम बंगाल का निरंकुश वामपंथी शासन ही था। साम्यवाद की अपेक्षा वहाँ पार्टीवाद व एकात्मक शासन की स्थापना हो रही थी।

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