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खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास सम्बन्धी प्रावधानों को लागू
करवाने हेतु मचायी जा रही हड़बड़ी केन्द्र सरकार की सोची-समझी रणनीति का
हिस्सा है। वह यह दिखाना चाहती है कि जनता से जुड़े मुद्दों पर काफ़ी
संजीदा है और इसीलिए मानसून सत्र का इंतज़ार नहीं कर सकती। संसद के विशेष
सत्र या अध्यादेश के ज़रिए क़ानून बनाकर वह 2014 की जनता-जनार्दन को जीतना
चाहती है। स्पष्ट है कि कांग्रेस की कमान में बचे ये दो अंतिम तीर हैं,
जिससे वह चुनावी चिड़िया पर निशाना साध रही है। किन्तु, ऐसा होनेवाला नहीं
है। जनता को मालूम है कि इन विधेयकों को चार साल लटकाए रखने का पूरा
श्रेय कांग्रेस को ही जाता है। हैरत होती है कि दीर्घसूत्री सरकार अचानक
इतनी मुस्तैद कैसे हो गयी! संसद के सामान्य सत्रों में कामकज ठप रखा जाता
है और फिर विशेष सत्र व अध्यादेश के ज़रिए जनहितैषी होने का संदेश दिया
जाता है। संप्रग के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया और केन्द्रीय
कृषि मंत्री शरद पवार ने ठीक ही कहा कि दूरगामी प्रभाव छोड़नेवाले इन
विधेयकों को संसद में विस्तृत चर्चा के बाद ही पारित किया जाना चाहिए।
कांग्रेस कुछ इसी तरह का आनन-फ़ानन राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी केन्द्र
(एनसीटीसी) की स्थापना के मामले में भी मचा रही है। संघीय व्यवस्था होने
के बावजूद भी राज्यों को विश्वास में लिये बग़ैर वह इसे एक आदेश के माध्यम
से निर्मित करना चाह रही है। राज्यों की चिंता वाजिब है, क्योंकि वे
केन्द्रीय जाँच व ख़ुफ़िया एजेंसियों के दुरूपयोग से वाक़िफ़ हैं। सीबीआई
रूपी तोते को हाथ से निकलता देख कांग्रेस एक शेर को पिंजड़े में क़ैद करने
की तैयारी कर रही है।
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