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पूर्व की ओर देखो नीति में एक नया अध्याय जोड़ते हुए भारतीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अभी हाल में जापान और थाईलैण्ड की यात्रा की। प्रधानमंत्री ने बुलेट ट्रेन, सामुद्रिक सुरक्षा और परमाणु सहयोग के क्षेत्र में अपने जापानी समकक्ष शिंजो एबी ने समझौता किया। जापान ने भारत को आश्वासन दिया कि वह भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता दिलाने में मदद करेगा। हालाँकि प्राकृतिक व मानवीय आपदाओं ने जापान को सबसे ज़्यादा क्षति पहुँचायी है, वह आज एक विकसित राष्ट्र है। हमें उससे आपदा-प्रबन्धन के गुर सीखना चाहिए। सज़ायाफ़्ता क़ैदियों के प्रत्यर्पण के मसले पर थाई प्रधानमंत्री इंग्लुक शिनवात्रा के साथ क़रारनामा हुआ। इस प्रकार की यात्रा और समझौतों से भारत और पूर्वी व दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आएगी।
मनमोहन सिंह के इस दौरे से चीनी मीडिया में आशंका के दौरे पड़े। चाईना कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने इसे चीन की घेरेबन्दी करार दिया। ज्ञातव्य हो कि चीन इस क्षेत्र को अपनी बपौती समझता आ रहा है। नब्बे के दशक में ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के बाद भारत और आसियान व एशिया प्रशान्त के देशों के मध्य आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक व अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय समझौते हुए। इसका सुफल अपरिहार्य रूप से भारत व तत्सम्बन्धी देश को मिला। अपनी बपौती छिनती देख चीन की चिंता स्वाभाविक है।
अपने धरातल से आरम्भ करके श्रीलंका के हम्बनटोटा और पाकिस्तान के ग्वादर में पत्तन बनाते हुए सूडान तक चीन ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल’ के ज़रिए हमारी और कई अन्य देशों की सागरीय घेरेबन्दी कर रहा है। दक्षिण चीन सागर व पूर्वी चीन सागर में द्वीपों के क़ब्ज़े को लेकर चीन के वियतनाम व जापान के साथ रिश्तों में कड़वाहट आयी है। लोहा गरम है, बस एक ज़ोरदार चोट की ज़रूरत है। भारत को इन देशों के साथ मज़बूत रिश्तों को प्राथमिकता सूची में रखना चाहिए। इससे यह फ़ायदा होगा कि हमें चीन के बैशाखी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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