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चीन ने भारत के विरूद्ध हमेशा से ही अविश्वास व संदेह की दीवार बना रखी है, जिसे वह प्रायः और ऊँची व मज़बूत करता रहता है। लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी इलाक़े में चीनी घुसपैठ इसी श्रंखला में एक और कड़ी है। इस दीवार के साथ-साथ भारत और चीन के संयुक्त व्यापारिक हित के तार एक दूसरे से जुड़े हैं , जिसे दोनों देश नकार नहीं सकते हैं और व्यापार के लिए विश्वास का होना निहायत ज़रूरी है। चीनी प्रधानमंत्री ली कछ्यांग की भारत यात्रा को विश्वास- बहाली के रूप में देखा जा सकता है।
कछ्यांग ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए नये सिरे से प्रयास करने, ब्रह्मपुत्र नदी की जलधारा मोड़ने के विषय पर जानकारी साझा करने और आठ विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर करके कुछ सकारात्मक संकेत अवश्य दिया है, लेकिन इससे ज़्यादा उत्साहित नहीं हुआ जा सकता है। कोरे आश्वासन, शब्दों की जुगाली, कथनी व करनी में अंतर आदि जुमले चीन का पर्याय बन चुके हैं। उल्लेखनीय है कि कई मंचों व मोर्चों पर चीन पहले भी वादे करता रहा है, लेकिन वह बेशर्मी व दबंगई से वादाख़िलाफ़ी भी करता रहा है।
हर मोर्चे पर विफल रहनेवाला पाकिस्तान जबतब हमारी ओर त्यौरियाँ चढ़ाता रहता है तो चीन की सोच का सहज ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है, जिसने हमें युद्ध व व्यापार में शिकस्त दी है। कहा जाता है कि आग के लिए पानी का डर बना रहना ज़रूरी है और इसे ही ‘‘शक्ति-संतुलन’’ की संज्ञा दी गयी है। भारत को व्यापारिक, सामरिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि मोर्चों पर चीन को क़रारा जवाब देना चाहिए। तभी उसकी उच्छृंखलता पर क़ाबू पाया जा सकेगा। इससे ‘‘बहु-ध्रवीय व्यवस्था’’ की स्थापना में भी मदद मिलेगी।
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