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नासूर नक्सलियों ने बरपाया कहर

Vikalp
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छत्तीसगढ़ के जगदलपुर और बस्तर ज़िलों में नक्सलियों द्वारा की गयी दुस्साहसिक वारदात अत्यंत घृणास्पद व निंदनीय है। इस जघन्यतम् कुकृत्य ने साबित कर दिया है कि नक्सलियों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को दरक़िनार करते हुए भारतीय सत्ता अधिष्ठान के खि़लाफ़ मोर्चा खोल दिया है।। सामूहिक हत्याकांड में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का सफ़ाया करना यह इंगित करता है कि माओवादी अब बर्बर व आदिम व्यवस्था को प्रश्रय दे रहे हैं।

सेना, अर्द्ध-सैनिक बल, राज्य पुलिस, केन्द्र व राज्य की ख़ुफ़िया निकायों और राजनीतिक नेतृत्व के मध्य समुचित संवाद व तालमेल की कमी से इस भयावह घटना को अंजाम देने में नक्सलियों की राह आसान हो गयी। पिछले कई हमलों में भी ‘‘संवाद-शून्यता’’ एक मुख्य वजह और मददगार बनी। प्रदेश सरकार व कांग्रेस नेताओं की लापरवाही भी नक्सलियों का हौसला बुलंद करने में सहायक रही। संवेदनशील इलाकों में चुनावी रैलियों का आयोजन करने से पहले सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किये जाने चाहिए। ऐसे कई अन्य कारण हैं, जिनका यदि समय रहते निदान कर लिया जाता तो नक्सलियों को ख़ूनी खेल खेलने को अवसर न मिलता।

इस वाकये से तो यह स्पष्ट हो गया है कि जिस मंतव्य के साथ साठ-सत्तर के दशक में नक्सलबारी आंदोलन शुरू किया गया, वह दशकों पीछे छूट गया। अब यह मुहिम आम आदमी के साथ होने का केवल छलावा करती है, क्योंकि नरसंहार करने से जनता का भला नहीं होता है। जनता का कल्याण तो सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, रोज़गार आदि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से होता है। वैकासिक प्रक्रिया को अवरूद्ध करके नक्सली यह क़ोशिश करते हैं कि ग्रामीणजनों में सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष व विद्रोह की भावना पनपे, जिसका वे दोहन करते हैं। वैसे यह भी एक स्थापित सत्य है कि यदि प्रगति के मार्ग को नक्सलियों ने बाधित किया तो प्रगति का कार्य प्रारम्भ नहीं करने और आरम्भ हो जानेपर ग़लत दिशा में मोड़ने का काम हमारे जनप्रतिनिधियों, वैकासिक नीतियों, नौकरशाही आदि ने किया।

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