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सवाल सिर्फ़ सीबीआई का नहीं है…

Vikalp
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कोयला खण्ड आवंटन मामले की जाँच प्रक्रिया में केन्द्र सरकार के अनुचित हस्तक्षेप से क्षुब्द होकर सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई रूपी तोते को आज़ाद करने का निर्देश दिया है। इस तोते की रिहाई संघीय अन्वेषण निकाय की स्वायत्तता और जाँच प्रक्रिया की निष्पक्षता से जुड़ी है। सत्तासीन सरकारें इस एजेंसी का इस्तेमाल घटक दलों और विपक्ष पर दबाव बनाने के लिए करती रही हैं। यह हालात जब देश की शीर्ष जाँच एजेंसी का है तो अन्य के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

यहा सिर्फ़ सीबीआई को मुक्त करने का प्रश्न नहीं है बल्कि आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, पुलिस व प्रशासनिक व्यवस्था आदि विभिन्न जाँच व अभियोजन एजेंसियों को सरकार के अनुचित हस्तक्षेप से छुड़ाने का है। जबतब कोई घटक दल या विपक्ष केन्द्र व राज्य सरकारों की आँखों की किरकिरी बनता है, सारी एजेंसियाँ इनके पीछे लगा दी जाती हैं। जाँच की तलवार गले पर लटाकर अपने मनमाफ़िक काम करवाया जाता है। जगनमोहन रेड्डी का उदाहरण यहाँ समीचीन होगा। आन्ध्रप्रदेश में पिता की मृत्यु के बाद रेड्डी को मुख्यमंत्री न बनाने पर उन्होंने बग़ावत करके कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली। कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगने की आशंका के बीच सारी जाँच एजेंसियाँ उनके पीछे लगा दी जाती हैं। मामला बनता है आय से अधिक सम्पत्ति रखने का। अब भला किसे नहीं पता है कि यदि ईमानदारी से तहक़ीकात की जाये तो सभी नेताओं के पास बेहिसाब सम्पत्ति है। अलबत्ता बेहिसाब सम्पत्ति और सियासत का पुराना और गहरा याराना है। मैं यहाँ रेड्डी का समर्थन नहीं कर रहा हूँ बल्कि उनके खिलाफ़ जाँच और समय का रिश्ता दर्शा रहा हूँ।

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