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आजकल एक ख़ास चीज़ चलन में हैं। गर्भवती महिलाओं का सामान्य प्रसव करवाने की अपेक्षा ऑपरेशन विधि से बच्चा पैदा किया जा रहा है। इस गतिविधि में कुकुरमुत्ते की तरह जगह-जगह खुले प्राइवेट क्लीनिक और नर्सिंग होम विशेष तौर पर शामिल हैं।
जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के लागू होने के बाद सुरक्षित संस्थागत् प्रसव के मामलें में जागरूकता बढ़ी है। होम डिलीवरी की तादाद कम होती जा रही है। सभी लोग मेडिकल संस्थानों में जा रहे हैं। अपेक्षाकृत सक्षम लोग सरकारी अस्पताल के बजाय प्राइवेट अस्पतालों और डॉक्टरों के पास जाना पसन्द करते थे। कारण स्पष्ट है कि सरकारी में एक तो सुविधा कम थी और दूसरे उनके ‘स्टेटस’ के विपरीत था। यदि सामान्य प्रसव होता है, चिकित्सकीय ख़र्च ज़्यादा नहीं होता है। अधिकतर डॉक्टरों ने अघोषित रूप से सामान्य प्रसव को प्राथमिकता की सूची में सबसे नीचे ढकेल दिया। जो प्रसव सामान्य तरीक़े से हो सकता था, उसे जटिल बना करके ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की प्रवृत्ति चल निकली। अगर प्रसव जटिल होता है तो औसतन 15 से 20 हज़ार का बिल बनाया जाता है अन्यथा हज़ार-दो-हज़ार से काम चलाना पड़ता है।
डॉक्टर लोग यह काम अकेले नहीं कर रहे हैं, हम भी उनके इस गोरखधन्धे में अंशतः शामिल हैं। डॉक्टर ने हौवा खड़ा किया और हम तुरंत मान लेते हैं कि अब कोई चारा नहीं बचा है, ऑपरेशन करना पड़ेगा। महिलाएँ भी आसान रास्ते पर जाना चाहती हैं। अभी महिलाएँ इतनी कमज़ोर नहीं हुई हैं कि प्रसव पीड़ा न सहन कर सकें। सवाल उठता है कि यदि प्रसव सामान्य विधि से हो सकता है तो डॉक्टर लोग ऑपरेशन क्यों करते हैं ? मुझे ज़्यादा हैरानी तब हुई जब पता चला कि अधिकतर वामा डॉक्टर महिलाएँ हैं। भला एक महिला दूसरी महिला के स्वास्थ्य के साथ ऐसा खिलवाड़ कैसे कर सकती है !
एक बात और है – और यह बात मनोवैज्ञानिक स्तर पर लागू होती है। सामान्य प्रसव में मुख्य भूमिका डॉक्टर की न हो करके बल्कि नर्स और प्रशिक्षित दाइयों की ज़्यादा होती है। आजकल के महँगी पढ़ाई करके बने डॉक्टरों को यह गवारा नहीं है। प्रसव को जटिल बना करके मुख्य भूमिका अपने हाथ में ले लेते हैं। यहाँ वह फ़िल्मी स्टाइल से ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।
सरकार के लिए ख़ुशी और गर्व की बात है कि जनता का विश्वास एक बार फिर से सरकारी अस्पतालों पर बढ़ रहा है। मेरे कई मित्रों ने बताया, जो इस प्रक्रिया से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गुज़र चुके हैं, कि अब अस्पताल में तक़नीक, प्रशासन और सहूलियत के स्तर पर काफ़ी सुधार हुआ है। कम-से-कम यहाँ कुछ हद तक जवाबदेही तो होती है।
इस पूरे विमर्श में उन डॉक्टरों, नर्सों व अन्य मेडिकल कर्मिंयों की भूमिका को नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता है जो मेहनत और ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को हम सलाम करते हैं। एक बात और कि यदि प्रसव जटिल होता है तो ऑपरेशन और अन्य वैकल्पिक तरीकों का इस्तेमाल बेशक़ होना चाहिए। आख़िर यह मातृत्व और शिशु सुरक्षा से जुड़ा मामला है।
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