- 29 Posts
- 7 Comments
वर्ष 2013 के पहले दिन मैं अपने दो महिला मित्र के साथ हुनमानगढ़ी, फ़ैज़ाबाद दर्शन करने गया था। उस दिन मंगलवार भी था, इसलिए भीड़ भी ज़्यादा थी। कहने को तो पंक्ति लगी थी, लेकिन वो क़तार इतनी चैड़ी थी कि भीड़ में तब्दील हो गयी थी। बहरहाल, हम लाइन में लग गये। हम तीनों भगवान् जी के दर्शन पाने ही वाले थे कि मेरी एक मित्र अचानक बिल्कुल असहज हो गयी। वहाँ से फ़ौरन बाहर निकलने के लिए कहने लगी। ईश्वर की आधी-अधूरी झलक पाकर हम तुरन्त बाहर आ गये और उसकी परेशानी का सबब पूछा। उसने बताया कि किसी ने उसके साथ छेड़छाड़ की (शरीर के ऊपरी हिस्से पर)। यह सुनकर मैं अचम्भा हो गया। भला कोई भगवान् के सामने यह सब कैसे कर सकता है। ऐसे दरिंदे को तो भगवान् का भी डर नहीं था। मैं कुछ कर भी नहीं सकता था, सिवाय अपने मित्र को सांत्वना देने के। वह व्यक्ति भीड़ में खो गया। उसके बाद मुझे हर कोई दरिंदा नज़र आ रहा था। मेरे मुँह से आशीष वचन निकल रहे थे।
कोई भी व्यक्ति एक दिन यकायक बलात्कारी नहीं बन जाता है। उसमें बलात्कारिता के बीज इसी तरह शनैः शनैः पड़ते हैं। किनते ही मासूमों को शारीरिक और मानसिक यंत्रणाएँ देते-देते उसके हौसले बुलन्द हो जाते हैं। इस तरह एक दिन उसका दुस्साहस निर्भया, मुनिया आदि जैसों पर भारी पड़ता है।
Read Comments