Vikalp
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आर्थिक प्रगति के पीछे दौड़नेवाले विकास के आधुनिकीकरण प्रारूप ने कई देशों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की अन्धदौड़ के अन्धानुसरण ने वैश्विक तापमान् में वृद्धि, विस्थापन, असंतुलित प्रगति आदि जैसी कई नई समस्याओं को जन्म दिया है। बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति हेतु ‘‘अर्थ को अनर्थ (खोदना)’’ करके उस पर असंख्य घाव दिये जा रहे हैं। बाइस अप्रैल का दिन अर्थ (पृथ्वी) के लिए आरक्षित है। इस मौक़े पर धरती से जुड़े मुद्दों पर बहस-मुबाहिसा होती है। पृथ्वी दिवस हमें इन सभी पहलुओं पर ‘‘नये सिरे से सोचने’’ और ‘‘सोच को सच’’ में परिणत् करने का अवसर देता है। यह दृढ़ संकल्प करने का दिन हे न कि उत्सव मनाने का।
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